कलर्स का ‘शिव शक्ति – तप, त्याग, तांडव’ प्रवेश कर रहा है अपने अंतिम अध्याय में: एक दिव्य समापन जिसमें रुद्र शिव, पशुपतिनाथ, महाकाली और मार्तंड भैरव की अद्भुत कहानियां होंगी

असंख्य दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाली, यह कॉस्मिक प्रेम गाथा अब अपने अंतिम अध्याय की ओर तेज़ी से बढ़ रही है! राम यशवर्धन अभिनीत शिव और शुभा राजपूत अभिनीत पार्वती की मुख्य भूमिका वाले कलर्स की इस पौराणिक महागाथा ‘शिव शक्ति – तप, त्याग, तांडव’ में अब एक नया अध्याय शुरू हो रहा है। महीनों तक शिव और पार्वती के प्रबल तप और हृदयविदारक त्याग की झलक दिखाने के बाद, अब दर्शक तांडव का अंतिम और चरम रूप देखेंगे।

यह दिव्य समापन चार महान कहानियों में प्रकट होता है, जो एक से बढ़कर एक प्रबल हैं, और शिव-पार्वती के शाश्वत बंधन की आध्यात्मिक यात्रा को दर्शाती हैं – विरक्ति से विनाश तक, दिव्यता से अद्वितीय पुनर्मिलन तक। यह सफर रुद्र शिव से प्रारंभ होता है, जहां शोक में डूबे शिव स्वयं को भौतिक संसार से पूर्णतः अलग कर लेते हैं। विरक्त और विषाद से ग्रस्त, शिव खुद में ही सिमटते जाते हैं, जहां उनका दुःख धीरे-धीरे अनवरत क्रोध में बदल जाता है। इसके पश्चात प्रकट होते हैं पशुपतिनाथ, जहां शिव करुणा से परिपूर्ण एक रक्षक के रूप में उदित होते हैं, जो समस्त जीवों के अधिपति हैं। वे अपने क्रोध को उद्देश्य में बदलते हैं और अपने महान ज्ञान के साथ ब्रह्मांडीय संतुलन की रक्षा करते हैं। उधर, पार्वती महाकाली के रूप में अपनी परम शक्ति को जागृत करती हैं। प्रचंड और अजेय, वे अपनी सच्ची शक्ति को अपनाती हैं, अधर्म का नाश करती हैं और हर उस तूफान से टकराती हैं जो भीतर या बाहर कहीं भी उठने का साहस करता है। और अंततः, सबसे भीषण और विनाशकारी अवतार मार्तंड भैरव के रूप में शिव का अवतरण होता है – एक उग्र रक्षक के रूप में। शोक एक दिव्य ज्वाला में बदल जाता है, जो अंधकार को भस्म कर देती है और शाश्वत प्रेम के पुनर्जन्म का मार्ग प्रशस्त करती है।

शिव की भूमिका निभा रहे राम यशवर्धन कहते हैं, इस अंतिम अध्याय में प्रेम अपनी सबसे कठिन परीक्षा से गुज़रता है। यह अध्याय प्रेम को उसके सबसे व्यथित रूप में दिखाता हैकैसे शोक और पीड़ा देवताओं में भी बदलाव ला सकती है। मार्तंड भैरव केवल एक भयानक रूप नहीं हैं, बल्कि वह दिव्य प्रेम की प्रचंडता का प्रतीक हैं। जब प्रेम का अपमान होता है, तो सबसे शांत देवता भी अपना धर्मयुक्त क्रोध दिखा सकते हैं। यही बात भगवान शिव के सफर को इतना मानवीय बनाती है। फिर आते हैं पशुपतिनाथ। वह ऐसे योगीप्रेमी हैं जो अहंकार और सांसारिक बंधनों से विरक्त हैं, फिर भी ऐसा प्रेम करने में सक्षम हैं जो विशाल, निस्वार्थ और भौतिक सीमाओं से परे है। यह अध्याय उन सभी के दिल को छू जाएगा जिन्होंने कभी प्यार किया है, उसे खोया है, और फिर भी खुद को बेहतर बनाने की शक्ति पाई है। यह याद दिलाता है कि सच्ची भक्ति हासिल करने में नहीं, बल्कि किसी के लिए स्थान बनाए रखने में है, उनकी अनुपस्थिति में भी। इसका मतलब है प्रेम को बारबार चुनना, यहां तक कि टूटने के बाद भी।

पार्वती की भूमिका निभा रहीं शुभा राजपूत कहती हैं, मेरे लिए, यहअंतिम अध्यायअनेक आध्यात्मिक सीखों से भरा हुआ है। महाकाली हर उस स्त्री का रूप हैं जो धर्म की रक्षा के लिए साहस दिखाती हैं और अन्याय के विरुद्ध अपना प्रचंड स्वरूप दिखाती हैं। उनका क्रोध विध्वंसकारी नहीं हैवह दिशा दिखाता है। वह ऐसा क्रोध है जो नव निर्माण करता है, उद्देश्यपूर्ण है। इसी क्रोध से देवी पार्वती अपने पूर्ण रूप में परिवर्तित होती हैं। वह शिव के साथ पुनर्मिलन के लिए तैयार होती हैंएक समान रूप में। उनका प्रेम दिव्य यिनयांग हैशिव की स्थिरता पार्वती के तूफान को संतुलित करती है, और पार्वती की अग्नि शिव की शांति को ऊर्जा देती है। यही बात मुझे सबसे अधिक प्रेरित करती है। उनका प्रेम किसी नियम, विधि या सामाजिक संरचना में बंधा नहीं है बल्कि यह प्रकृति की स्वतंत्र, अनगढ़ सुंदरता में खिलता है। यह शुद्ध, आदिम और बराबरी का है। और मुझे लगता है यही संदेश हम सभी के लिए है: सबसे शक्तिशाली प्रेम वही होता है जिसमें आप बिना किसी डर के, पूरी तरह से खुद की तरह रह सकते हैं।

देखिएशिव शक्तितप, त्याग, तांडवहर सोमवार से रविवार, रात 8:00 बजे, केवल कलर्स पर।

mumbaipatrika

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