डॉ. तेजस मोजिद्रा ने आधुनिक डिज़ाइन में वास्तु शास्त्र के समावेशन की अपील की

अहमदाबाद: प्रख्यात वास्तुविद, वास्तु सलाहकार और शिक्षाविद् डॉ. तेजस मोजिद्रा ने प्राचीन भारतीय स्थानिक विज्ञान वास्तु शास्त्र को आधुनिक वास्तुकला प्रथा और औपचारिक शिक्षा में व्यवस्थित रूप से सम्मिलित करने की आवश्यकता पर बल दिया है। लगभग तीन दशकों के समृद्ध अनुभव के साथ, डॉ. मोजिद्रा भारत के उन अग्रणी विशेषज्ञों में माने जाते हैं जिन्होंने परंपरागत वास्तु सिद्धांतों को समकालीन डिज़ाइन की आवश्यकताओं के साथ समरस किया है।
अहमदाबाद में स्थित डॉ. मोजिद्रा तकनीकी वास्तुकला और आध्यात्मिक डिज़ाइन विज्ञान दोनों में अद्वितीय दक्षता रखते हैं। यह शहर अपने विरासत और आधुनिकता के समन्वय के लिए प्रसिद्ध है।
भारत और विदेशों में कई प्रतिष्ठित परियोजनाओं पर कार्य कर चुके डॉ. मोजिद्रा ने विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी और सलंगपुर में भगवान हनुमान की प्रतिमा जैसी परियोजनाओं में वास्तु परामर्श प्रदान किया है। उनका एक कार्यालय दुबई में भी है और उन्होंने यूएई, यूके, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी कार्य किया है।
डॉ. मोजिद्रा कहते हैं, “वास्तु कोई मिथक नहीं है, यह एक व्यावहारिक विज्ञान है, जो अपने समय से सदियों आगे था। मैंने लंबे समय से मंदिरों का अध्ययन किया है और कह सकता हूं कि मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर हो या महालक्ष्मी मंदिर — इनकी स्थापना संयोग नहीं थी, बल्कि खगोलीय गणनाओं के आधार पर की गई थी। यदि हम इन प्राचीन संरचनाओं को समझें, तो यह स्पष्ट होता है कि स्थान का हमारे स्वास्थ्य, व्यवहार और उत्पादकता पर गहरा प्रभाव पड़ता है।”
“वास्तु शास्त्र दिशाओं, ऊर्जा प्रवाह और पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए वास्तुकला को ब्रह्मांडीय सिद्धांतों से जोड़ता है। हमें इसे अंधविश्वास के चश्मे से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक विवेचना और पारंपरिक ज्ञान के सम्मान के साथ देखना चाहिए। प्राचीन मंदिरों की दिशा, उनका खगोलीय पिंडों के अनुरूप झुकाव, और प्रयोग में लाए गए निर्माण-सामग्री — ये सभी सोच-समझकर चुने गए थे। यदि इस ज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए, तो यह स्वस्थ घर, कुशल कार्यस्थल और टिकाऊ शहरी नियोजन में योगदान दे सकता है,” वे जोड़ते हैं।
डॉ. मोजिद्रा ने प्राचीन सरस्वती सभ्यता से जुड़े स्थलों पर भी व्यापक क्षेत्रीय अनुसंधान किया है, जिससे वास्तु शास्त्र की ऐतिहासिक जड़ों को और अधिक मजबूती मिली है।
वे बताते हैं, “वास्तु शास्त्र सरस्वती सभ्यता के काल में भी अस्तित्व में था। मैंने लोथल, धोलावीरा, विघाकोट और गुजरात तथा हरियाणा के कई अन्य स्थलों पर गहन अध्ययन किया है। इन प्राचीन बस्तियों में स्थानिक योजना, जल प्रबंधन और दिशागत संतुलन का गहरा ज्ञान स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। यह प्रमाण हैं कि वास्तु कोई बाद की खोज नहीं थी, बल्कि प्रारंभिक भारतीय शहरीकरण की मूलभूत नींव थी।”
उनके प्राचीन मंदिर स्थलों पर किए गए अनुसंधान ने वास्तु शास्त्र को एक वैध शैक्षणिक विषय के रूप में स्थापित करने की चर्चा को और गति दी है। वे भारत भर के प्रमुख संस्थानों में व्याख्यान देते हैं और वास्तु शास्त्र को आर्किटेक्चर और डिज़ाइन की पाठ्यक्रमों में शामिल करने की पुरज़ोर वकालत करते हैं।
शैक्षणिक जगत के बाहर भी डॉ. मोजिद्रा टीवी, रेडियो, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया रील्स के ज़रिए व्यापक जनसमूह तक पहुंच बना रहे हैं। वे तत्वम कन्सल्टन्सी सर्विस के सह-संस्थापक हैं और कैलाश खेर, अरमान मलिक, प्रतीक गांधी, पार्थिव गोहिल, मानसी पारेख, सचिन-जिगर जैसे प्रतिष्ठित कलाकारों के अलावा कई प्रमुख राजनीतिक और कॉर्पोरेट हस्तियों को परामर्श दे चुके हैं।
उन्हें सरस्वती पुत्र सम्मान, कुमकुम युवा रत्न अवॉर्ड सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों से सम्मान प्राप्त हो चुका है।
डॉ. मोजिद्रा का निरंतर प्रयास है कि भारत की आध्यात्मिक डिज़ाइन परंपरा को आज की वास्तुकला की चुनौतियों से जोड़ते हुए ऐसे स्थान निर्मित किए जाएं जो केवल उपयोगी ही नहीं, बल्कि प्रेरणादायक और दीर्घकालिक भी हों।