विश्वगुरु – एक फिल्म जो दिल और दिमाग दोनों को छूती है

कुछ फिल्में ज़ोर से नहीं बोलतीं, लेकिन उनके संदेश कानों से नहीं, दिल से सुनाई देते हैं। “विश्वगुरु” भी ऐसी ही एक फिल्म है। यह फिल्म बताती है कि भारत को दुनिया में “सुपरपावर” नहीं बनना है, बल्कि “विश्वगुरु” बनना है — और ये काम हम शस्त्रों से नहीं, शास्त्रों से कर सकते हैं।
निर्देशक शैलेश बोगाणी और अतुल सोनार ने एक ऐसी फिल्म बनाई है जो सादगी में ही गहराई रखती है। इसका कोई बड़ा प्रोपेगेंडा नहीं है, बस एक सच्चा इरादा है।
क्या खास है इस फिल्म में – हर किरदार से आप जुड़ सकते हैं। मुकेश खन्ना की गंभीरता हो, या कृष्ण भारद्वाज की जिज्ञासु सोच — सभी पात्र असल ज़िंदगी से प्रतीत होते हैं।
श्रद्धा डांगर, हीना जयकिशन, गौरव पासवाला के भावनात्मक दृश्य फिल्म को हृदयस्पर्शी बनाते हैं। मकरंद शुक्ल, प्रशांत बरोत, राजीव मेहता और अन्य कलाकार फिल्म को जीवंत बनाए रखते हैं।

छोटे लेकिन यादगार रोल में सोनू चंद्रपाल, कुरुष देबू और सोनाली लेले भी चमकते हैं।मेहुल सुरती का संगीत सिर्फ सुनाई नहीं देता, बल्कि अंदर तक महसूस होता है। यह कहानी का एक और किरदार बन जाता है।
“दुनिया को एक और सुपरपावर नहीं, एक विश्वगुरु की ज़रूरत है।“
रेटिंग: 4.5/5 – एक ऐसी फिल्म जो थिएटर से बाहर निकलने के बाद भी दिल में बनी रहती है।
